वेद से बौद्ध तक
भारत विभिन्नताओं का देश है|इसकी सभ्यता, संस्कृति से लेकर इसका पूरा धार्मिक परिदृश्य तक अनेकरूपता का एक अनुपम उदाहरण है| बात अगर धर्म की की जाए तो भारतीय दृष्टि से धर्म भी भारत का स्वछंद हिस्सा रहा.. कहने का तात्पर्य यह है कि यंहा भिन्न - भिन्न मतावलंबियों ने अपने अनुसार धर्म के नए स्वरूप कों व्याख्यायित कर, प्राचीन भारत की धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया | भारत वेदों का देश रहा है, अतः यंहा धर्म की दृष्टि से पहला युग वैदिक युग हीं रहा |इस युग में चार वेदों ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद की रचना हुई साथ हीं साथ इन वेदों से संबंधित सहिंताओं और ब्राह्मण ग्रंथो की भी रचना हुई | वेदों ने लोगो में धर्म की दृष्टि जागृत कर उन्हें कर्म के महत्व कों समझाया तथा साथ हीं साथ लोगो कों भिन्न प्रकार के धार्मिक कृया कलापो से भी जोड़ा |लेकिन वैदिक युग के अंत तक जन्म आधारित चार वर्णो की व्यवस्था ने जन्म लिया... वर्ण का आधार कर्म नहीं अपितु जन्म होने लगा | ब्राह्मण सर्वेसर्वा बन गए, क्षत्रियों ने राजकार्य संभाला, वैश्यों ने व्यापार कों,शुद्रो कों इन तीनो वर्णो का दास बना दिया गया |उनकी स्थिति दयनीय हो गई ...