गुदड़ी के लाल :लाल बहादुर शास्त्री
राष्ट्र के जन जन के प्रति अनुराग तथा देश की माटी के कण -कण के प्रति श्रद्धा रखने वाले त्यागी, तपस्वी, परोपकारी लाल बहादुर शास्त्री जी भारतीयता के मूर्धन्य हस्ताक्षर हैं|
उत्तर प्रदेश में एक कायस्थ परिवार में जन्मे लाल बहादुर शास्त्री जी के बचपन का नाम नन्हे था.. जब यें केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी इनके पिता की मृत्यु हो गई और इन्हें अपना गुजर-बसर अपनी मां और अन्य भाई बहनों के साथ अपने ननिहाल में करना पड़ा| यूं तो शास्त्री जी के बारे में बहुत सारी बातें प्रचलित है लेकिन यह बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि इन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि ग्रहण करने के बाद अपने नाम से श्रीवास्तव को जो की एक जाति सूचक शब्द है हमेशा - हमेशा के लिए हटा दिया और इनका नाम हो गया लाल बहादुर शास्त्री| इसके पश्चात 'शास्त्री' शब्द को लोगों ने लाल बहादुर के नाम का पर्याय ही बना दिया इसे उपाधि के तर्ज पर नहीं बल्कि उनके नाम के ही रूप में देखा जाने लगा|
महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रभावित होने के साथ-साथ महात्मा गांधी को अपना गुरु मानने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी एक सशक्त व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति होने के साथ ही साथ समाज के सजग प्रहरी भी थे| इन्होंने गांधी जी के नेतृत्व में हो रहे आंदोलनों के लिए अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी और आंदोलनों के समर्थन के कारण इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा |स्वाधीनता संग्राम के जीन आन्दोलनों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं। वास्तव में लाल बहादुर शास्त्री जी सही अर्थों में सच्चे गांधीवादी थे देखा जाए तो इन्होंने ही गांधी के सिद्धांत सादा जीवन उच्च विचार
को मूर्त रूप दिया और पूरी जिंदगी सादगी से व्यतीत की |
गांधीजी से प्रभावित होने के बाद भी इन्होंने स्वयं के विचारों को अधिक महत्व दिया और इन्होंने वही किया जो इन्हें देश हित में सबसे अधिक सही लगा |मरो नहीं मारो का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे,इन्होने भारत पाक युद्ध में एक सशक्त राजनेता की भूमिका निभाते हुए आजाद भारत के नव स्वरूप को पूरे विश्व में प्रसिद्धि दिलाई| सैद्धांतिक पक्षों की अपेक्षा शास्त्री जी ने व्यवहारिकता पर अधिक बल दिया |इन्होने हर उस वर्ग की बात की जिसे कभी हाशिए पर रखा गया था|किसानों और देश के जवानों के प्रतिनका अगाध प्रेम जय जवान जय किसान केे नारे में झलकता है|
आज भारतीय राजनीति की जो स्थिति है ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री जी का संपूर्ण जीवन और उनका व्यक्तित्व हमारे लिए एक आदर्श के रूप में प्रदर्शित होता है|आज के राजनेता जो घोटाले पर घोटाले किए जा रहे हैं,भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार किए जा रहे हैं और कुर्सी की चाह में केवल और केवल मानवता का हनन करने में लगे हुए हैं उन्हें शास्त्री जी के ईमानदार व्यक्तित्व से सीख लेने की जरूरत है |उन्हें अपनी आंखें खोल यह देखने की जरूरत है कि किस तरह एक प्रधानमंत्री इस देश का ऐसा भी हुआ जिसनें कुर्सी की चाह नहीं रखी और जो प्रधानमंत्री पद पर आसीन होते हुए भी अपने वेतन का एक भाग गरीबों के लिए दान करता था| जो स्वार्थ के पीछे नहीं भागा और जिसका पूरा जीवन सादगी की मिसाल बना .... आज के नेताओं की तरह शास्त्री जी का उद्देश्य कभी भी जेब गर्म करने का नहीं रहा कुर्सी की चाह उन्हें दरअसल कभी थी ही नहीं तभी तो एक रेल दुर्घटना में लोगों के मारे जाने पर उन्होंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया|आज भारतीय नेता बड़े-बड़े कांड होने पर भी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाते हैं लेकिन शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे जो किसी भी घटना पर अपराधबोध होने की सूरत में अपनी जिम्मेदारी लेने से नहीं हिचकते थे|... संक्षिप्त रूप में कहें तो शास्त्री जी अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे उनका पूरा व्यक्तित्व पूरा जीवन ही हमारे लिए अनुकरणीय है और एक सिख है | यह उनके सोचो का बेधड़कपन और विचारों का स्वातान्त्र ही है जो आज भी उन्हें प्रासंगिक बनाए हुए हैं|
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