भिक्षावृत्ति

भिक्षुक और भिक्षा... इनदोनों शब्दो से लगभग हम सब परिचित हैं, हम सब ने कभी ना कभी उक्त दोनों का सामना अवश्य किया है|आजकल भीख मांगना भारत जैसे विकासशील देशो में तो ट्रेंड बन गया है..यही वजह है कि भिखारियों की बढ़ती तादाद ने समस्या का रूप धारण कर लिया है| 
रेलयात्रा हो या बस अड्डा,कहीं कोई पर्यटन स्थल हो या तीर्थ स्थान ..या हमारे घर के पास की सड़क हर जगह भिखारियों का जमावड़ा लगा पड़ा है |
 कहीं कोई अपने दुख का रोना रो लोगो से पैसे झींट रहा है तो कहीं कोई छोटे - छोटे बच्चो कों दिखा "भगवान भला करेंगे "की बात कह लोगो से पैसे ऐठ रहा... किसी -किसी ने तो छोटे -छोटे बच्चो का झुण्ड हीं लगा दिया है इस काम के लिए, ऐसे में चारो तरफ एक अलग हीं वृत्ति छायी हुई है 'भिक्षावृति'
हर कोई भीख मांगने में व्यस्त है|तो क्या भीख मांगने वाला हर व्यक्ति भिक्षुक है?
बिलकुल नहीं
भारतीय समाज में भिक्षुक के जिस स्वरूप की परिकल्पना की गयी है वह आज के भिक्षुकों से पुरी तरह भिन्न है, उसका उद्देश्य कभी भी किसी कों ठगना या मुर्ख बनाना नहीं रहा है और ना हीं धन संचित करने के लिए बच्चो कों अग़वा करना,उनका गिरोह बनाना और भीख मंगवाना रहा है|वह तो केवल दो वक़्त की रोटी का मोहताज़ रहता है... वह तोअपने दुख में हीं दुखी है, उसे भला किसी कों ठगने की फुरसत कंहा! भिक्षुक के असल रूप कों दर्शाती है निराला की निम्न कविता -

वह आता,
दो टूक कलेज़े के करता, पछताता
पथ पर आता
.....


लेकिन आज स्थिति भिन्न है.. समय के बदलाव के साथ -साथ लोगो की सोच में भी बदलाव आया है.. जो कोई रोजगार कर अपना जीवन यापन कर सकते हैं वो भी भिक्षा कों वृत्ति बना अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं |गजब की हेयता आ गयी है लोगो में, उनके लिए सज्जनों की भावनाएं केवल वृत्ति का एक साधन मात्र है|उन्हें केवल अपने से मतलब है बाकी दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं | और उनकी यही सोच मार रही है... लोगो को, समाज को, देश को, संस्कृति को और ना जाने कितने वास्तविक भिक्षुओं कों |
आज जरूरत है कि हम सतर्क रहें और भिक्षा कों वृत्ति का साधन ना बनने दें |इसका यह मतलब कतई नहीं कि हम भिखारी कों भीख ना दें... भीख दें अवश्य दें किन्तु रूपये -पैसे की जगह रोजमर्रा की चीज़ो की भिक्षा दें |


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