तुलसी की कवितावली
लोकआस्था के महान लोकनायक तथा तत्कालीन समाज के दिशा निर्देशक होने के साथ - साथ उत्कृष्ट कवि के रूप में विख्यात महाकवी तुलसीदास वह नाम है, जो ना केवल हिंदी साहित्य और समाज को अपितु पूरे भारत की आत्मा को रूपायित करता एक मूर्त प्रतिबिम्ब है, जो बिम्बित है भारत के हर कोने में, हर घर में, हर गांव में...किसी ना किसी रूप में, किसी ना किसी अर्थ में |
सही मायने में तुलसीदास जी समाज के सच्चे प्रहरी रहें हैं, अनेक कष्टो को सहकर भी उन्होंने कल इस समाज को आनेवाले संकट से चेताया, तथा ईसे जगाने का सार्थक प्रयास किया था, आज उनकी रचनाएँ यह कार्य कर रही हैं |
तभी तो आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी नें अपनी
पुस्तक में लिखा हैं -"लोकमर्यादा पालन की ओर जनता का ध्यान दिलाने के साथ ही गोस्वामीजी ने अन्त:करण की सामान्य से अधिक उच्चता सम्पादन के लिए शीलोत्कर्ष की साधना का जो अभ्यासमार्ग मानव हृदय के बीच से निकाला, वह अत्यन्त आलोकपूर्ण और आकर्षक है|"
यूँ तो गोस्वामी जी नें रामललानहछू, वैराग्यसंदीपनी, रामाज्ञाप्रश्न, जानकी-मंगल, रामचरितमानस, सतसई, पार्वती-मंगल, गीतावली, विनय-पत्रिका, कृष्ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली जैसी अनेक रचनाएँ की और यें रचनाएँ अपना विशेष महत्व भी रखती हैं किन्तु इन सभी रचनाओं में रामचरितमानस,दोहावली,विनय-पत्रिका और कवितावली कालजयी रचनाएँ हैं |
कवितावली
गोस्वामी जी की 12 कृतियां जिन्हें प्रमाणिक रचना स्वीकार किया जाता है,उसमे कवितावली आखिरी कृति है| कवितावली से तात्पर्य कवित्तो की अवली से है |सोलहवीं शताब्दी में रची गयी कवितावली में श्री रामचन्द्र के इतिहास का उनके अद्भुत व्यक्तित्व का बड़ा हीं मनमोहक रूप अंकित किया गया हैं |रामचरितमानस की हीं तरह सात कांड में विभक्त यह ग्रंथ कवित्त,चौपाई,सवैया छंदो की अनोखी धरोहर है |
भाषा पर असाधारण अधिकार रखने वाले तुलसीदास जी ने कवितावली में भाषा का जो रूप अंकित किया है वह अपने आप में मनमोहक है, उन्होंने अन्य रचनाओं की भांति कवितावली में भी अपनी वाणी को बड़े ही सरल और सहज ढंग में प्रस्तुत करते हुए अपने इष्ट श्री राम के गुणों को व्याख्यायित किया है,जिसे आम मनुष्य भी आसानी से समझ सकता है|एक उदाहरण दृष्टव्य है -
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी |
जीविका विहीन लोग सिद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करि?’
वेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ विलोकिअत,
साँकरे सबैं पै, राम! रावरें कृपा करी |
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी ||
मुक्तक शैली में रचित कवितावली एक व्यंग्य काव्य है। जिसकी भाषा व्यंजना शक्ति से संपन्न है। इसमें नियमानुसार मंगलाचरण नही है। तुलसी ने मानस के प्रत्येक काण्ड में मंगलाचरण दिया है किन्तु कवितावली के आरंभ में मंगलाचरण का एक ही छंद है। इसका एक हीं कारण है की यह रचना प्रबंध रूप में नहीं होकर मुक्तक रूप में है। मुक्तक काव्यों का भी अपना विशेष महत्व रहा है, इसे हम शुक्ल जी के शब्दो में निम्न रूप में देख पाते हैं -मुक्तक में प्रबंध के समान रस की धारा नहीं होती। जिसमें कथा प्रसंग की परिस्थिति में अपने को भूला हुआ पाठक मग्न हो जाता है। सहृदय में एक स्थायी प्रभाव गृहीत रहता है। इससे तो रस के छीटे पड़ते हैं। जिससे ह्रदय कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है। यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है , तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता।”
मुक्तक स्वतंत्र होते हुए भी अपने आप में स्वत: पूर्ण होते हैं। कवितावली का प्रत्येक छंद स्वतंत्र होते हुए भी अपने –आप में पूर्ण है |
भाटों की कवित्त – सवैया शैली से लेकर अन्य छंदो, अलंकारों, और रसों का प्रयोग कवितावली में रामकथा कहने के लिए तुलसी ने जमकर किया है।जिससे इस काव्य की शोभा बहुत अधिक बढ़ गयी है.. लेकिन तुलसीदास का उद्देश्य कहीं भी काव्य कला का प्रदर्शन करना नहीं रहा है स्वयं रामचंद्र तिवारी ने इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि-“उन्हें काव्य शास्त्र के विविध अंगों का पूर्ण ज्ञान था किन्तु इनका प्रदर्शन उनका ध्येय नहीं था। उन्होंने वर्ण्य –विषय को दृष्टि में रखकर उसके अनुकूल ही छंदों का प्रयोग किया है। उनका एक मात्र उद्देश्य अभिव्यक्ति की पूर्णता है।भाषा ,शैली ,छंद ,गुण ,रीति ,अलंकार,उक्ति –वैचित्र्य ये सभी उसकी पूर्णता में सहायक हैं।”
एक उदाहरण दृष्टव्य है -
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी |
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी ||
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी |
‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनश्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी ||
कवितावली की कुछ मुख्य बातों को हम निम्न बिंदुओं के अंतर्गत देख सकते हैं-
1. कवितावली में राम के बाल रूप से लेकर उनके सभी रूपों तक की झांकी प्रस्तुत की गई है|
2. तुलसीदास जी के जीवन में जो सामाजिक अवरोध आते हैं तथा तुलसीदास जी उन अवरोधों का किस प्रकार सामना करते हैं उसे भी हम कवितावली में देख सकते हैं|
3. जाति पाति के बंधन से मनुष्य के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने का आवाहन भी कवितावली में है |
4. 425 पदों की रचना वाली कवितावली में रामचरितमानस की ही भांति बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक कुल सात कांड है|
5. कवितावली ब्रज भाषा में रचित है|
6. अरण्यकांड और किष्कीँधा कांड में जहां कवि ने केवल एक -एक छंदो का प्रयोग किया है,वही उत्तरकांड में कुल 183 छंदो का प्रयोग किया है|
7. उत्तरकांड में कवि ने मुगल शासन काल में भारतीयों की दयनीय दशा का भी वर्णन किया है|
8. रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने राम के निर्गुण रूप का भी वर्णन किया है किंतु कवितावली में राम के केवल सगुण रूप को ही व्याख्यायित किया है|
9. भाटो की शैली में रचित कवितावली के पद गेय है|
10. विनय पत्रिका और गीतावली की तुलना में कवितावली की भाषा अधिक प्रभावोत्पादक है क्योंकि यह संस्कृतनिष्ठ नहीं है| इसके अलावा कवि ने अवधि का भी प्रयोग कवितावली में किया है|
निष्कर्ष रूप में हम यही कह सकते हैं कि काव्योंत्कर्ष की दृष्टि से 'कवितावली' गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रोढ़ रचनाओं में से एक है, जो आज भी उतनी हीं प्रासंगिक है जितनी कल थी | कवितावली के कवि का मुख्य उद्देश्यय अपने इष्ट श्रीराम के ईश्वरत्व की प्रतिष्ठा करना रहा है,और इसमें वह पूर्णरूपेण सफल हुए हैं|
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