अनुवादक के गुण

आज के संदर्भ में यदि हम अनुवाद को देखें तो यह कह सकते हैं कि अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम एक भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में व्यक्त करते हैं | यह ऐसा सेतु बंधन का काम है जिसके बिना विश्व संस्कृति का विकास संभव नहीं है| दरअसल,अनुवाद ही वह प्रक्रिया है जिसके तहत हम मानव के इस विश्व कुटुंब में संपर्क एकता एवं समझदारी की भावना विकसित करते हुए उसे गुटबंदी और संकुचित क्रांतियतावाद जैसे संकीर्ण मानसिकता से बचा सकते हैं|

 सही अर्थों में अनुवाद एक परकाम - प्रवेश की प्रक्रिया है| विभिन्न विद्वानों ने अनुवाद के क्षेत्र में अर्थ को आत्मा और शैली को शरीर मानकर अनुवाद के सिद्धांतों को व्याख्यायित किया है |

 आज की बाजारवादी व्यवस्था में पूरी धरती को विश्व ग्राम में बदल देने में जितनी भूमिका मीडिया की है संभवत अनुवाद की भी इससे कुछ कम नहीं है पर दुर्भाग्य से बहुत लोग अनुवाद कर्म को दोयम दर्जे की रचना अर्थात सर्जना की सर्जना   मानतेे हैं|
 कुछ लोग  इससे दूसरी शब्दावली में अनुसृजन भी कहते हैं|
 किंतु इसे केवल अनुसृजन यां अनुदित सामग्री कहना..  अनुवादको के प्रति घोर अन्याय है... यदि अनुवादक मनोयोग निष्ठा और सजग सतर्क होकर किसी रचना का अनुवाद करें तो अनुदित रचना मौलिकता का आस्वाद तो देगी ही कलात्मकता का ताजा तटका आनंद भी उससे मिल सकता है साथ में अनुवाद के प्रति 'सेकंड हैंड साहित्य' घटिया रचने जैसे गंदे जुमले से इसे मुक्ति भी मिलेगी|

 एक अनुवादक की क्या-क्या विशेषताएं हैं इसे हम निम्न बिंदुओं के अंतर्गत देख सकते हैं-

1.  लक्ष्य भाषा और स्रोत भाषा की जानकारी उत्तम अनुवाद और अनुवादक के लिए सुखद है :-
 कहने का तात्पर्य यह है कि एक श्रेष्ठ अनुवादक का लक्ष्य भाषा और स्रोत भाषा दोनों पर समान अधिकार होना चाहिए| प्रत्येक भाषा की एक विशिष्ट वाक्य संरचना एवं प्राथमिक अवस्था होती है जिसको जानना अनुवादक के लिए अति आवश्यक है..इसके साथ ही साथ भाषा में मुहावरे एवं लोकोक्तियों का भी संस्कृति के आधार पर प्रयोग होता है |एक अनुवादक अभ्यास और अनुभव द्वारा इन दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को समझ सकता है|प्रकृतियों से अनभिज्ञ अनुवादक केवल हास्यास्पद रचना कर सकता है.. जैसे अंग्रेजी भाषा की संस्कृति से अनभिज्ञ अनुवादक she is a cat का हिंदी अनुवाद वह एक बिल्ली है करेगा जबकि यंहा  cat का अर्थ द्वेषी महिला /लड़की होगा |

2. मूल पाठ तथा अनुदित पाठ में समानता अपरिहार्य :-अनुवाद स्वतंत्र सृजन प्रक्रिया नहीं  है |अनुवाद कर्म स्त्रोत भाषा की किसी कृति विशेष से जुड़ा होता है, और अनुवाद की सफलता - असफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मूल कृति का सन्देश और प्रभाव लक्ष्य भाषा में आ सका है यां नहीं | अतः अनुवादक का यह पहला दायित्व है कि वह मूल रचना की वस्तुगत जानकारी प्राप्त कर हीं अनुवाद करे |

3. मूल रचना की वस्तु की जानकारी:-वस्तु विशेष के ज्ञान के बिना अनुवादक कभी भी सटीक और सही अनुवाद नहीं कर सकता|उसे ऐसे विषय के अनुवाद से बचना चहिये जिसका उसे ज्ञान ना हों अन्यथा वह ऐसी भयंकर भूल करेगा जो अर्थ का अनर्थ कर देंगी |विषय विशेष का जानकार अनुवादक ना केवल  उस विषय की परिभाषिक शब्दावली से परिचित होता है अपितु वह विषय के अनुरूप शैली के प्रयोग में भी सक्षम होता है |

4:-कथ्य और कथन प्रणाली अर्थात शैली समतुल्यता का बोध :-कथ्य और कथन किसी कृति के प्राण होते है.. इनमे हुई छोटी सी भी गलती अर्थ का अनर्थ कर देती है अतः अनुवादक को इस क्षेत्र में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और पूरे मनोयोग के साथ अनुवाद कर्म को पूर्ण करना चाहिए |

5. विशिष्ट मेधा और मनोयोग का होना आवश्यक :-अनुवाद कर्म चुनौती भरा कर्म है |अनुवादक के रास्ते कभी सुगम नहीं होतें | उसे भाषा के कई रूपों से जूझना होता है | कभी मिथक और प्रतीक उसके राह के रोड़े बनते हैं तो कभी अलग परिवेश और संस्कृति... कभी सटीक शब्दो के चुनाव में उसे दिक्क़तो का सामना करना पड़ता है तो कभी मुहावरें और लोकोक्तिया उसकी परेशानिया बढ़ा देतें है |ऐसे में आवश्यक है कि अनुवादक 
के पास विशिष्ट मेधा हों तभी वह मनोयोग के साथ अनुवाद कर्म पूरा कर सकेगा |

6.अनुवाद विधा का ज्ञान अनुवाद और अनुवादक के लिए हितकर :-अनुवाद विधा 
से अनभिज्ञ अनुवादक कभी भी सही और सटीक अनुवाद नहीं कर सकता.. अनुवादक का कार्य एक दायित्वपूर्ण और महान कार्य है.. इस कार्य को करने से पूर्व अनुवादक को अनुवाद विधा का ज्ञान अर्जित करना पड़ता है, तभी वह एक सफल अनुवादक बन  पाता है |

7. व्याकरण बोध अनिवार्य शर्त :- व्याकरण किसी भी भाषा का शरीर होता है | व्याकरण के ज्ञान के बिना अनुवाद असम्भव है | अनुवादक को स्रोत और लक्ष्य दोनों भाषाओ के व्याकरण पर समानधिकार होना चाहिए | उदाहरण -

Ram eats mango.
राम आम खाता है
पहले वाक्य में क्रिया पहले आ रही है जबकि दूसरे में कर्म |

8. अनुवाद में प्रमाणिकता और मौलिकता काबिलें गौण :- अनुवाद में प्रमाणिकता का विशेष महत्व है.. प्रमाणिकता हीं अनुवाद को अनुवाद की संज्ञा से अभिहित करती है |

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