आचार्य विनोबा भावे :जय जगत

पंचशील के सिद्धांतो को माननेवाले इस भारत भूमि के हर एक हिस्से में शुरू से हीं सत्य और अहिंसा का बोलबाला रहा है.. इस देश में ना जाने ऐसे कितने महात्मा हुएँ जिन्होंने अहिंसा को अपना शस्त्र बना लोकहित और देशहित का कार्य किया.. ऐसे हीं एक युगपुरुष और महात्मा हैँ... आचार्य विनोबा भावे जी |

  विनायक राव भावे उर्फ़ विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था |घर में धार्मिक परिवेश के कारण धर्म और ईश्वर में शुरू से हीं इनकी आस्था रही, तभी तो इन्होने बहुत कम उम्र में भगवद्गीता जैसे ग्रन्ध को पढ़ डाला| विनोबा भावे की ज़िन्दगी में सबसे बड़ा परिवर्तन महात्मा गाँधी से मुलाक़ात के बाद आता है.. वे गाँधी जी के विचारों से कुछ इस क़दर प्रभावित होतें हैं कि अपनी अकादमिक पढाई- लिखाई बंद कर वे अपना समस्त जीवन देश सेवा में अर्पित करने की ठान लेते हैं...लेकिन सीखने की ललक उनमे हमेशा से रही,यही वजह थी कि उन्होंने आगे चलकर अपने ज्ञान की सहायता से कई बहुमूल्य किताबें लिखीं |
गाँधी के सान्निध्य में वे देशहित का कार्य करने लगते हैं...खादी वस्त्रों का प्रचार करते (स्वदेशी अपनाओ ), साफ सफाई के महत्व को समझाते, सामाजिक असमानता दूर करनें की हर भरसक कोशिश करते...

सन 1923 में इन्होने ‘महाराष्ट्र धर्म’ नामक एक मासिक पत्रिका निकालीं  इस पत्रिका में यें वेदान्त के महत्व और उपयोगिता के ऊपर निबंध लिखते थें |बाद में ये मासिक पत्रिका सप्ताहिक पत्रिका के रूप में आने लगी.. लोकजागरण में इस पत्रिका का अहम योगदान रहा | चूकि तत्कालीन समय अंग्रेजो का समय था अतः देश की स्वतंत्रता के लिए विरोध आवश्यक था... विनोबा भावे नें अपने स्तर पर अहिंसात्मक रूप से लेखनी के सहारे भी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लोगो को नवचेतना से आपूरित किया.. इस कारण कई बार इन्हें जेल भी जाना पड़ा किन्तु इन्होंने हौसला और हिम्मत ना हारा, जेल में भी यें अपने कार्य में रत रहें तभी तो इन्होने जेल में रहते हुए ‘ईशावास्यवृत्ति’ और ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ नामक दो पुस्तकों की रचना भी की |

जैसा की हम जानते हैं कि बचपन से हीं धार्मिक प्रवृति के होने के कारण विनोबा जी सहृदयशील थें..इनका निम्नअंकित कथन इसका प्रमाण है.... "कोई भी क्रांति अपने उडगन स्थल अथवा स्त्रोत पर एक आध्यात्मिक रूप में होती है. इस आध्यामिक रूप का मूल होता है समस्त लोगों के हृदय को एकसूत्र में बंधना" 
यह इनकी सहृदयता हीं थी जिसने सभी धर्मों को समान माना तथा मानव - मानव के भेद को मिटाते हुएँ 'ॐ तत सत ' और 'जय जगत ' का नारा दिया |

विनोबा जी वास्तव में समानतावाद के पक्षधर थें इन्होंनें हमेशा से सबको सामान माना.. इसका सबसे बड़ा प्रमाण सर्वोदय  तथा भूदान आंदोलन हैं |विनोबा जी के "अंतराष्ट्रीय 
रेमन मैगसेस पुरस्कार” के पहले प्राप्तकर्ता होने के यही कारण है |

यह दोनों आंदोलन जातिगत भेद से परे .. मानवतावाद के वास्तविक प्रतिबिम्ब है |सामाजिक से लेकर नैतिक स्तर पर भारतीयों में एक नया परिवर्तन ला समाज को नई दिशा देने में इस महापुरुष का बहुत योगदान रहा है, गाँधी के असल अनुयायियों और देशसेवकों में से एक विनोबा जी का नाम आज भी इनके अविस्मरणीय योगदानो के लिए भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है.. यूँ तो इनकी मृत्यु 1982 में हीं हो गई किन्तु यें अब भी जीवित है.. हमारे विचारों में |.

यह इस महानायक के कर्तव्यपरायणता का हीं प्रमाण है कि इन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया |

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