कहानी और उसका बदलता स्वरूप
हिंदी साहित्य जगत में कहानी का इतिहास बहुत अधिक पुराना नहीं है| चूकि गद्य में रचनाएं तो भारतेंदु काल में ही प्रारंभ हो चुकी थी लेकिन कहानी लेखन को प्रोत्साहित करने का कार्य किसी ने किया तो वें थे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी|
जैसा कि हम जानते हैं कि कहानीयों का स्वरूप कभी भी किसी निश्चित मानदंड में बँधा नहीं होता इसलिए इसमे शनै: शनै : परिवर्तन होता रहता है लेकिन फिर भी कहानी की अपनी परंपरा रही है हमारे साहित्य में,....
आज इसी परम्परा का अध्ययन हम करेंगे |
कहानी हमारे लिए कोई अपरिचित शब्द नहीं है.. हम अपने बचपन में झांके तो इसका जवाब मिल जाएगा हम सभी ने अपने बचपन में दादी, नानी, काकी और अपनी मां से कहानियां अवश्य सुनी है| ना जाने कितनी ही कहानियां हमारे अतीत का हिस्सा रह चुकी है| हम जरा इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पाते हैं कि रामायण,महाभारत और पंचतंत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में अनेक ऐसी कहानियां भरी पड़ी है जिसे हमने सुना है या पढ़ा है|
यदि हम तुलना करें प्राचीन युग की कहानियों से आज के युग की कहानियों की तो समय के बदलाव के साथ-साथ कहानियों के स्वरूप में भी काफी हद तक परिवर्तन आया है| प्राचीन कालीन कहानियां जहां घटना प्रधान होती थी, उसमें तिलिस्म और जादुई चीजों को दर्शाया जाता था वहीं आज की कहानियों ने अपना रुख समय और समाज की ओर मोड़ दिया है... उसने मनुष्य को केंद्र में रख यथार्थपरक दृष्टि को अपनाया है और समाज और साहित्य के यथार्थ संबंध को दर्शाने का सफल प्रयास किया है|
कहानी के कुछ परंपरागत तत्व है, जिनके बिना कहानियो का कोई अस्तित्व नहीं है.. ये तत्व हैँ -
कथावस्तु
चरित्र चित्रण
परिवेश
संरचना, शिल्प
उद्देश्य
उपर्युक्त तत्व कहानी संरचना की आधारशीला है.. इनके बिना कहानी कहना यां लिखना असम्भव है ;किन्तु इसका यह मतलब कतई नहीं की प्रत्येक कहानी मे उपर्युक्त सभी तत्वों का एक समान होना निश्चित है.. कोई कहानी घटना प्रधान हों सकती है तो कोई पात्र प्रधान.. कहीं कहीं शैलीगत भिन्नता भी देखने को मिल जाती है अर्थात तत्विक एकरूपता हर कहानी मे एक सी जरूरी नहीं है |
कहानी के स्वरुप पर विचार करने के बाद अब हम हिंदी कहानी के विकास की क्रमिक चर्चा करेंगे |
चूकि हिंदी की पहली कहानी कौन सी है यह अब भी विवाद का विषय है... फिर भी आधुनिक युग मे हिंदी कहानी की एक विशेष परम्परा के दर्शन होते हैं |यह परम्परा तीन चरणों मे उभर कर सामने आती हैं -
1. प्रेमचंद पूर्व युग की कहानी (1901-1914)
2. प्रेमचंद युग की कहानी(1914-1936)
3. प्रेमचंदोत्तर युग की कहानी (1936-आज तक )
1.प्रेमचंद पूर्व युग की कहानी -
हिंदी की पहली कहानी कौन सी है यह विवाद का विषय बना हुआ है|हिंदी गद्य के आरंभिक दौर मे मुंशी इन्शाअल्ला खा नें उदयभान चरित यां रानी केतकी की कहानी की रचना की थी, समय की दृष्टि से यह सबसे पुरानी कहानी कहीं जा सकती है लेकिन कुछ विद्वानो को इसमें आधुनिकता की पूर्ण झलक नहीं दिखाई देती और उन्हें इसमें फारसिपन भी नज़र आता है.. ऐसे मे हिंदी की पहली कहानी कौन सी है यहt
विवाद उठता है और आरंभिक कहानियो के रूप मे एक लम्बी फेहरिस्त सामने आती है -
राजा भोज का सपना
इंदुमती
ग्यारह वर्ष का समय
दुलाई वाली
*प्रेमचंद पूर्व युग की कहानियो की प्रमुख विसिष्टता ये है कि ये आदर्शवादी हैं |
2. प्रेमचंद युग की कहानी -प्रेमचंद जिस समय कहानियाँ लिख रहें थें उस समय और भी रचनाकार अपनी लेखनी का सार्थक प्रयोग इस विधा को समृद्ध करने मे कर रहें थें.. जिनमे जयशंकर प्रसाद, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, सुदर्शन आदि प्रमुख हैं |इन्होने कहानियो को एक नया आयाम दिया |इस युग को कहानी कला की उत्कृष्टता का काल कहना गलत ना होगा, क्योंकि यहीं वह समय था ज़ब गुलेरी जी की सुप्रसिद्ध कहानी उसने कहा था, सुखमय जीवन
प्रसाद जी की गुंडा, मधुआ, पुरस्कार, आकाशदीप आदि......प्रेमचंद जी
की कफन, शतरंज के खिलाड़ी, नशा,ईदगाह, मंत्र, नमक का दरोगा आदि कहानियाँ प्रकाशित हुई |
* इस युग की कहानियों की सबसे बड़ी विशिष्टता तो ये थीं की ये शुरू मे आदर्शवादी रुझान अपनाये हुए थीं किन्तु बाद मे इन्होने यथार्थवाद का दामन थाम लिया |
इन कहानियों मे दर्द हैं, कसक है, पीड़ा है, उन शोषितो, उन वंचितों की जिन्हे सदैव हीं हासिये पर रखा गया है |
3. प्रेमचंदोत्तर युग -इस युग मे कहानियों का विकास और तेजी से हुआ है | आज हर विषय हीं कहानी मे उतारे जा रहें है |इस युग मे कहानी
की मूलतः दो धाराएं प्रवाहित हों रही हैं
क.प्रगतिवादी कहानियाँ -ये
कहानियाँ अपने पूर्ववर्ती (प्रेमचंदयुगीन ) परम्परा के निर्वाहक के रूप मे उभर कर आई हैं.. यथार्थवादी धरातल पर खड़ी
ये कहानियाँ धार्मिक अंधविश्वास, आर्थिक शोषण, राजनितिक दाँव पेंच, मध्यवर्गीय जीवन की विडंबनाओ को बखूबी उकेरा हैं |
इस युग के कहानीकारों मे यशपाल का
विशेष स्थान हैं |
ख. मनोवैज्ञानिक कहानियाँ -हिंदी मे
प्रेमचंद के बाद कुछ ऐसे कहानीकार आएं जिन्होंने व्यक्ति मन को केंद्र मे रख कर उसके अंतर्मन के अंतरद्वन्द को चित्रित किया | सामाजिक जीवन से अलग ये कहानियाँ पूर्णतः व्यैक्तिक हैं|जैनेन्द्र,इलाचंद्र जोशी, अज्ञय
आदि प्रमुख हैं |
नई कहानी....
हिंदी मे कहानी का नया आंदोलन वास्तव मे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हीं शुरू हुआ | यह ऐसा समय था ज़ब प्रेमचंदोत्तर युग की यथार्थवादी और मनोवैज्ञानिक दोनों धाराएं एक मे समाहित होती नज़र आती हैं |इस समय समाज और व्यक्ति दोनों को हीं समान महत्व दिया गयां किसी की अनदेखी ना की गई |इस युग मूलतः पारिवारिक समस्याओ और मध्यवर्गीय जीवन की विडंबनाओ को विषय बनाया गया |चूकि ग्राम जीवन, शहर की जटिलता आदि का भी चित्रण खूब हुआ हैं |इस युग के प्रमुख कहानीकारों मे मोहन राकेश, भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, हरिशंकर परसाई,धर्मवीर भारती आदि प्रमुख हैं |
आज भी हिंदी कहानी का विकास पूर्ववत जारी हैं और निश्चय हीं भविष्य मे यह विकास साहित्य की इस विधा को नया पहचान दिलाएगा |
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