जलवायु परिवर्तन, ग्रीष्म लहर और वनाग्नि
जलवायु एक ऐसा कारक है,जिस पर किसी देश की प्रगति निर्भर करती है| अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी देश की संपन्नता या विपन्नता का मूल कारण जलवायु हीं है| यह देश की आर्थिक प्रगति का मूल आधार है, मूल रूप से जिन देशों में कृषि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है,वहां जलवायु की महत्वपूर्ण भूमिका है|
आज जलवायु परिवर्तन देश से विदेश तक चर्चा का विषय बना हुआ है| क्योंकि जिस रफ्तार से जलवायु परिवर्तन हो रहा है वह कहीं ना कहीं संपूर्ण मानव जाति के लिए भविष्य में घातक सिद्ध होने वाला है | यह जलवायु परिवर्तन का ही प्रभाव है कि आज पर्यावरण में अनेक परिवर्तन हो रहें है जैसे - तापमान में बढ़ोतरी हो रही है,वर्षा में कमी आ रही है,हवा की दिशाओं में परिवर्तन हो रहें हैं आदि | इस परिवर्तन का मूल कारण मानवीय गतिविधियों को माना जा रहा है, इसके अलावा कुछ प्राकृतिक कारण भी इसके जिम्मेदार है|मनुष्य ने अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए जिस तरह प्रकृति को क्षति पहुंचाया है वह निश्चय ही घातक और भयकारी है | उसने जमकर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है| पूरे जोर-शोर में कल कारखाने की स्थापना की है, वृक्षों का उन्मूलन भी उसने उसी तेजी के साथ किया है इस तरह अपने स्वार्थ में अंधा हो उसने प्रकृति से बैर मोल लिया है, जिसका दुष्परिणाम है 'जलवायु परिवर्तन'|
प्राकृतिक कारणों में सौर विकिरण में बदलाव,ज्वालामुखी का विस्फोट आदि शामिल है|
जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा और मुख्य कारक ग्रीन हाउस गैसों का अधिक प्रयोग है | यह तापमान बढ़ोतरी के मुख्य कारक है|
साल दर साल तापमान में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होती जा रही है,जिसकी वजह से ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं| इससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और जल सुरक्षा जैसी चुनौतियां सामने आई हैं।
हम वैश्विक तापमान के आकड़ों की तरफ देखे तो पता चलता है कि 1850 के बाद से लगभग एक शताब्दी से अधिक समय तक वैश्विक तापमान में मामूली गिरावट दर्ज की जा रही थी और इसलिए किसी भी प्रकार के गंभीर परिवर्तन की कोई आशंका भी नहीं जताई गयी , परन्तु 1975 के बाद से तापमान के ग्राफ ने एक अलग ही रुझान प्रदर्शित किया और 2015 तक तो पृथ्वी सौ साल पहले के मुकाबले 1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गई|अगर मौजूदा परिस्थितियों में कोई सुधार नहीं किया गया तो पृथ्वी इस शताब्दी के अंत तक 4˚C गर्म हो जाएगी।यह ग्रीष्म लहर एक चेतावनी है आने वाले खतरे की|
लेकिन दुख की बात तो यह है कि अब भी लोग इस समस्या को समस्या नहीं मान रहे हैं उनके लिए जलवायु परिवर्तन कोई बड़ा मुद्दा या कारण नहीं है, स्वार्थलोलुपता ने उन्हें कुछ इस तरह अंधा कर दिया है कि उनका लक्ष्य केवल और केवल अपनी पॉकेट गर्म करना रह गया है| मानव मानवता और प्रकृति से उनका कोई लगाव नहीं है | भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी इस समस्या को अधिक गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है यहां वर्षा की कमी हो रही है,फसलों की बर्बादी हो रही है लेकिन ग्रीन हाउस गैसों का प्रयोग जोरो -शोरो से किया जा रहा है|
अतः आवश्यकता है कि हम सभी वक़्त रहते चेतें यदि वक्त रहते हम नहीं जागे तो फिर स्थिति विकटम ख़डी हो जाएगी,जिसका सामना लगभग असंभव सा होगा|
दावानल या वनाग्नि की समस्या पिछले कुछ वर्षो में कुछ विशेष उभर कर आ रही है| जलवायु परिवर्तन के कारणों की तरह इसके भी मूल कारणों में मानव निर्मित कारणों का अधिक योगदान रहा है इसके अलावा कुछ प्राकृतिक कारण भी है जैसे बिजली का गिरना,पेड़ों का घर्षण, पत्थरों का टकराव आदि|जो दावानल जैसी समस्या उत्पन्न करते हैं,लेकिन वनों की अधिकांश आग मानव निर्मित होती हैं, कभी-कभी तो जान-बूझकर भी आग लगाई जाती है |
यह आग भीषण तबाही मचाती है| ऐसा नहीं है कि यह केवल रिहायशी इलाकों या जंगलो तक हीं सिमट कर रह जाती है अपितु यह अपने फैलाव के कारण मनुष्य, जानवर और देश को भारी क्षति पहुंचाती है |साथ ही साथ विश्वस्तरीय जलवायु परिवर्तन का कारण भी बनती है |वनाग्नि से वन आवरण, मिट्टी की उर्वरता, पौधों के विकास, जीवों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते है और जीवन कष्टदायी हो जाता है | चाहे हम ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग की बात करें या फिर भारत के उत्तराखंड और नैनीताल की वनाग्नि की इस आग ने हर जगह केवल और केवल तांडव हीं मचाया है |
कहीं हजारों की संख्या में लोग बेघर हुए,तो कहीं जानवरों ने आग में झुलस कर दम तोड़ा, कहीं वनो का आकार सिकुड़ गया तो कहीं खेती लायक भूमि बंजर सी हो गई,कहीं मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो गई तो,कहीं मिट्टी की गुणवत्ता|
कई देशों की सरकार ने इस भीषण समस्या के समाधान के लिए कई तरह के कानून भी बनाए हैं लेकिन स्थिति अभी भी ज्यों की त्यों है| हर वर्ष यह समस्या हमारे सम्मुख आ खड़ी होती है और हम विवश होकर टुकटुक देखते रह जाते हैं|
अतः आज आवश्यक हो गया है कि सरकार कड़े से कड़े कानून बनाये और उनको सख्ती से लागु करें |
जो लोग अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए वनों को नुकसान पहुंचाते हैं या द्वेष की भावना के कारण वनो में आग लगाते हैं उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए और साथ ही साथ जंगलों में आने जाने वाले हर व्यक्ति की सही तरीके से जांच पड़ताल की जाए कि क्या कहीं वह किसी ज्वलनशील पदार्थ को लेकर तो साथ नहीं जा रहा | इसके साथ ही साथ हम नागरिकों को भी जागरूक होना होगा और यह समझना होगा कि प्रकृति हमारी रक्षक हैं,हमारी मित्र हैं उसका इस तरह दोहन करना उचित नहीं है| अगर हम वक्त रहते नहीं सुधरे तो हमें अपनी गलतियों पर पछताने तक का समय भी नसीब ना होगा |
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