परम्परा : गुड़ की भेली
कहते हैं कि परंपरा और संस्कृति के संबल पर ही कोई देश महान बनता है, संस्कृति और परम्परा देश रुपी रथ के पहिये की भांति होती है, जो ना केवल उसे आगे बढ़ने में सहायता करती हैं अपितु उसके आधार स्तम्भ के रूप में खड़े होकर उसके अस्तित्व को पूर्णता भी प्रदान करती है |भारत की महानता भी इन्हीं पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों की देन है..
'अहिंसा परमो धर्म 'और 'पंचशील' की नीतियों पर चलने वाला भारत एक विविध संस्कृति वाला देश है|
जंहा विविधता में एकता इसकी प्रमुख विशेषता है वही परंपरा के प्रति श्रद्धा और समर्पण इसका प्रमुख भाव| परंपराएं इसकी वह मीठी धरोहर है कि विदेशों से आए सैलानी भी इसमें सराबोर होने से खुद को रोक ना पाए|
दरअसल,भारत में हर सभ्यता हर संस्कृति समाहित है इसने हर परंपरा को अपने में समेट के रखा है, इसका इतिहास जितना स्वर्णिम है उतना ही स्वर्णिम है इसकी परंपराओं का सांस्कृतिक और समन्वयकारी रूप, यह परम्पराओं की प्राचीनता और भव्यता का हीं प्रमाण है कि यह सिंधु घाटी की रहस्यमयी संस्कृति से शुरू होती है और भारत के दक्षिणी इलाकों में किसान समुदाय तक जाती है, यह राजाओं को शासक के रूप में चित्रित ना कर प्रजापालक रूप में दर्शाती है तो यह गरीब मजदूरों को एकता में बल का पाठ भी पढ़ाती है, कहने का तात्पर्य यही है कि इसने सबको जोड़ा है, सबको साथ रखा है और इस तरह अतीत के फूलों से वर्तमान को सजा दिया है |
भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसकी बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है।देवताओं की इस धरती’ में संस्कृति, रिवाज़ और परंपरा के अतिरिक्त भी बहुत कुछ खास रहा है।इसकी सांस्कृतिक धरोहर बहुत संपन्न है। यहाँ की संस्कृति और परम्परा अनोखी है और वर्षों से इसके कई अवयव अब तक अक्षुण्ण हैं। आक्रमणकारियों तथा प्रवासियों से विभिन्न चीजों को समेट कर यह एक मिश्रित संस्कृति बन गई है। आधुनिक भारत का समाज, भाषाएं, रीति-रिवाज इत्यादि इसका जीवंत प्रमाण हैं।अतिथि देवो भवः की सोच में विश्वाश रखनेवाला भारत हमेशा से अपनी परंपरा और आतिथ्य के लिए मशहूर रहा है |
यह भारतीय स्वर्णिम परम्परा और विशिष्ट जीवनशैली का हीं प्रमाण है कि विदेशी भी इसकी प्रशंसा करने से पीछे ना हटते हैं......
भारतीय जीवनशैली प्राकृतिक और असली जीवनशैली की दृष्टि देती है। हम खुद को अप्राकृतिक मास्क से ढंक कर रखते हैं। भारत के चेहरे पर मौजूद हल्के निशान रचयिता के हाथों के निशान हैं’।
जाॅर्ज बर्नाड शाॅ
अमूर्त परंपराओं का भी भारत में मूर्त इतिहास रहा है जब हम भारत की पारंपरिकता
पर विचार करते हैं तो देखते हैं कि यहां साहित्य से लेकर समाज तक हर क्षेत्र में परंपराओं का क्रमिक इतिहास रहा है...
गीत -संगीत की हीं हम बात करे तो देखते हैं कि भारत लोकगीतों का देश रहा है... यंहा शादी ब्याह से लेकर फसलों की बुवाई कटाई तक,सावन के झूले से लेकर बसंत की बहार तक, और आसाढ़ से लेकर फागुन के माह तक पर गीतों की रचना हुयी हैं |गीतों की बड़ी हीं सुन्दर परम्परा रही हैं यंहा |
धर्मनिरपेक्षता
यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पहलू है हम शुरू से ही देखते हैं कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहा है |यहां बौद्ध धर्म से लेकर जैन धर्म इस्लाम धर्म से लेकर ईसाई धर्म तक का बोलबाला रह चूका है... बहुसंख्यक सनातनी होने के बावजूद भी भारत नें कभी भी किसी धर्म को खुद से अलग नहीं माना और ना ही किसी धर्म का या धार्मिक मान्यताओं का विरोध किया है... यही कारण है कि भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन या पारसी सभी तरह के धर्मों के लोग मिलकर रहते हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हर नागरिक को किसी भी धर्म को चुनने और मानने का समान अधिकार है।विभिन्न धर्मों के इस भूभाग पर कई मनभावन पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं - दिवाली, होली, दशहरा, पोंगल तथा ओणम, ईद उल-फ़ित्र, ईद-उल-जुहा, मुहर्रम, क्रिसमस, ईस्टर आदि बहुत लोकप्रिय हैं।धर्मनिरपेक्षता यंहा की मिट्टी में बसी हुयी हैं |
प्रेम और सम्मान की भावना से आप्लावित -
प्रेम और सम्मान के लिए मशहूर भारत राधा कृष्ण से लेकर श्रवण कुमार तक के गुणों
का पूजक है...अच्छे संस्कारों की बदौलत ही हम अपने गुणों से पहचाने जाते है और यही संस्कार हमारी संस्कृति को बचाए रखते है। आज हमारे देश की संस्कृति यहां के अच्छे संस्कारों के कारण ही विश्व भर में प्रसिद्ध है।
भाषा
भाषाओं के मामले में भारतवर्ष विश्व के समृद्धतम देशों में से है। संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की राजभाषा है, और अंग्रेजी को सहायक राजभाषा का स्थान दिया गया है।यंहा भाषाई एकता की भी विशिष्ट परंपरा रही है,तभी तो भिन्न-भिन्न बोलियो भिन्न-भिन्न भाषाओं के लोग परस्पर प्रेम की भावना से रहते हैं तथा एक दूसरे के सुख दुख - एक दूसरे के त्योहारों में भी अपनी हिस्सेदारी निभाते हैं|यह भारतीय परम्परा हीं हैं जो सबको जोड़े हुए है |
निष्कर्ष रूप में,हम बस यही कह सकते हैं कि परंपराएं भारत के लिए गुड़ की भेली की तरह है जो हर तरह से प्रेम और मिठास की द्योतक हैं |इनके बिना क्या भारत और क्या भारतवासी सभी का अस्तित्व अधूरा है|आज यह बड़े खेद का विषय है कि हम पाश्चात्य संस्कृति की ललक में अपनी संस्कृति को नकार रहे हैं और उसकी निंदा करने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं| वैश्वीकरण के इस युग में शेष विश्व की तरह भारतीय समाज पर भी अंग्रेजी तथा यूरोपीय प्रभाव पड़ रहा है। एक खुले समाज के जीवन का यत्न कर रहे लोगों को मध्यमवर्गीय तथा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। यह निश्चय हीं चिंता का विषय है ।लेकिन इतनी विविधता के बावजूद भारत में लोग एकजुट हैं और अपनी संस्कृति और परंपरा पर गर्व महसूस करते हैं.... यह वाकई बड़ी बात है... हमें यह समझना होगा कि
बाहरी लोगों की खूबियों को अपनाने की भारतीय परंपरा का यह नया दौर हम, हमारी संस्कृति, हमारी स्वर्णिम परम्परा तीनो के लिए खतरा है,
इसका बहिष्कार हीं हमारा बचाव है |
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