जवाहर नवोदय विद्यालय

भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में हम शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं।भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव यूरोपीय ईसाई धर्मप्रचारक तथा व्यापारियों के हाथों से डाली गई। उन्होंने कई विद्यालय स्थापित किए।
आजादी के बाद राधाकृष्ण आयोग (१९४८-४९), माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) 1953, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (१९५३), कोठारी शिक्षा आयोग (१९६४), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (१९६८) आदि के द्वारा भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देनें की गंभीर कोशिश की गयी। लेकिन परिणाम कुछ अधिक सुखदाई नहीं निकले| शिक्षा के माध्यम से शहरी क्षेत्रों का तो विकास हुआ, शहर के लोग पढ़े-लिखे आगे भी बढे लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति मंद की मंद हीं पड़ी रही | शिक्षा को लेकर ग्राम वासियों में अभी भी दोहरी मानसिकता घर किए हुए थी| चूकि तत्कालीन समय में अधिकतर ग्रामवासी दलित,गरीब और मजदूर हुआ करते थे अतः उन्हें पेट भरने और घर के काम काज से फुर्सत ही नहीं मिलता था कि वे शिक्षा की ओर ध्यान दें और अपना बौद्धिक विकास कर सकें |उनमें से कुछ लोग चाह कर भी खुद को शिक्षित नहीं कर पाते थे क्योंकि तत्कालीन शिक्षा प्रणाली अत्यंत महंगी  थी| अतः इन समस्याओं को दूर करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस की सरकार के राजीव गांधी नें एक कारगर कदम उठाया और जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना का कार्य प्रारंभ किया| इस शिक्षा परियोजना के तहत इस बात का ध्यान रखा गया कि विशेष प्रतिभाशाली बच्चों को गुणात्मक शिक्षा उपलब्ध कराकर उन्हें समुचित अवसर प्रदान किए जाएं ताकि वे अपने जीवन में तेजी से आगे बढ़ सकें। 


तमिलनाडु को छोड़कर पूरे भारत में भारतीय शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनानें में जवाहर नवोदय विद्यालय की एक विशेष भूमिका रही है| आवासीय तथा सह शिक्षा जैसी विशेषताओं से आपूरित यें विद्यालय राजीव गांधी के सपनों के विद्यालय हैं |26 सितंबर, 1985 को शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया|1986 में इसी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा राजीव गांधी सरकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई। नीति का मकसद महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा में समान अवसर मुहैया कराना था। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के तहत देश भर में जवाहर नवोदय विद्यालयों की स्थापना की गई प्रत्येक विद्यालय के लिए कक्षाओं, शयन कक्षों, कर्मचारी आवासों, भोजन-कक्ष तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं जैसे खेल के मैदान, कार्यशालाओं, पुस्तकालय एवं प्रयोगशालाओं इत्यादि के लिए पर्याप्त भवनों से युक्त सम्पूर्ण परिसर की व्यवस्था भी की गई |जवाहर नवोदय विद्यालयों में प्रमुख रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। 75 प्रतिशत सीटों पर ग्रामीण बच्चों को प्रवेश देने का प्रावधान है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए जिले में उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित रखे जाते हैं, कुल सीटों का एक तिहाई बालिकाओं के लिए और तीन प्रतिशत विकलांग बच्चों के लिए आरक्षित है।यंहा कक्षा-6 से कक्षा-12 तक प्रतिभाशाली बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती हैं | मुफ़्त भोजन एवं आवास, वर्दी, पाठय-पुस्तकों, लेखन सामग्री तथा घर आने-जाने के लिए रेल और बस किराए पर होने वाले व्यय के वहन करने की व्यवस्था भी की गई है। तथापि, कक्षा-9 से कक्षा-12 तक के छात्रों से 600 रुपये प्रति माह का आंशिक शुल्क नवोदय विकास निधि के रूप में लिया जाता है।लेकिन अनुसूचित जनजाति के छात्रों, बालिकाओं, विकलांग छात्रों और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चों को इस शुल्क से पूरी छूट दी जाती है।


नवोदय विद्यालयों की विशेषताएं और उद्देश्य -

1. ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली बच्चों का विकास करना |
2. आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों तक शिक्षा का दिया जलाना |
3. तृभाषा सूत्र का अनुपालन करना
4. राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ करना|
5.सामाजिक भावना की समृद्धि के लिए  प्रयास करना
6.समानता के आधार पर शिक्षा की व्यवस्था करना |
7.संकीर्ण मानसिकताओं से मुक्ति दिलाने में भी संघर्षरत |
8.सम्पूर्ण देश में एक समान माध्यम जैसे इंग्लिश और हिंदी के शिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराना।

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