भारतीय बैंक : कल और आज

भारतीय बैंको का इतिहास बहुत अधिक पुराना नहीं है, लगभग 200 वर्षों पुराना यह इतिहास अपने भीतर कई तथ्यों, राजनीतिक उथल -पुथल और ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हुए हैं|
    उपर्युक्त बिंदुओं पर चर्चा करने से पहले हमें   यह जानना होगा कि आखिर 'बैंक' है क्या?और इसका भारतीय परिवेश में क्या योगदान है?
 सीधे और सरल शब्दों में कहें तो
 बैंक एक वित्तीय संस्था है जो जमा,अग्रिम और अन्य संबंधित सेवाओं से संबंधित है, यह उन लोगों से धन प्राप्त करता है जो जमा के रूप में बचत करना चाहते हैं और उन लोगों को धन उधार देता है जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है|
 इस तरह बैंक एक माध्यम के रूप में कार्य करते हुए अमीर और गरीब तबके के बीच वित्तीय संतुलन स्थापित करने का सराहनीय प्रयास करता है|
जैसा कि हम जानतें हैं कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली लगभग 200 वर्ष पुरानी है अतः इस बीच हुएँ उथल- पुथल और परिवर्तनों को समझने के लिए हमें कुछ वर्षो पीछे जाना होगा |
ब्रिटिश शासन काल से पूर्व भारत में बैंकिंग प्रणाली का कोई विशेष  विकास नहीं हुआ था|
 1770 में यूरोपीय पैटर्न पर भारत में पहला बैंक 'बैंक ऑफ हिंदुस्तान' स्थापित किया गया|

 इसके बाद 1786 मैं 'बैंक ऑफ कोलकाता' की स्थापना हुई तथा 1806 में वेलेजली के नेतृत्व में मद्रास में  एक बैंक की स्थापना की गयी जिसका नाम 1809 में 'बैंक ऑफ़ बंगाल'कर दिया गया|
 इस बैंक ने हीं भारत में पहला नोट जारी किया |
 ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में 3 बैंकों की स्थापना की, जिनके नाम कुछ इस तरह है-

 बैंक ऑफ़ बंगाल
 बैंक ऑफ बॉम्बे
 बैंक ऑफ़ मद्रास
 भारतीय इतिहास में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है किंतु कालांतर में इनका विलय 'इंपिरियल बैंक' में कर दिया गया,जो 1955 में 'भारतीय स्टेट बैंक' में विलीन हो गया |

 1935 ईस्वी में 'भारतीय रिजर्व बैंक 'की स्थापना की गई इसके बाद अन्य कई बैंक भारत में स्थापित हुए| 'इलाहाबाद बैंक' भारत का पहला निजी बैंक था |
 प्रारंभ में बैंकों का जुड़ाव केवल वाणिज्य केंद्रों तक रहा लेकिन वर्तमान में स्थिति बदली है बैंकों का सीधा जुड़ा आम जनता से हुआ है अब कोई भी व्यक्ति आसानी से धन लेनदेन की प्रक्रिया बैंक  के माध्यम से पूरी कर सकता है| आज बैंक आम आदमी को तरह-तरह की सुविधा प्रदान कर रहे हैं जिसमें आवास ऋण, कार ऋण,व्यक्तिगत ऋण,शैक्षणिक ऋण आदि प्रमुख है| इसके अलावा बैंक अपने खाताधारकों को लॉकर,क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड आदि की भी सुविधा प्रदान कर रहे हैं| और इस तरह वे भारतीय अर्थथव्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाहक का काम कर रहेेे हैं |
लेकिन क्या केवल इतना हीं सत्य हैं?
बिल्कुल नहीं!
यह तो केवल बैंकों का एक सकारात्मक पक्ष है, इसके कई अन्य पक्ष भी है जो नकारात्मकता का पर्याय बन चुकें हैं.. 
आज आम आदमी बैंक में अपना पैसा जमा करने से डर रहा है क्योंकि उसे अपने पैसों पर विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लुटेरे मंडराते हुए नजर आ रहे हैं,  नोटबंदी के डर से भी वह सहमा हुआ है कि कहीं उसके खून पसीने की कमाई को काला धन कह कर उससे बैंक के चक्कर ना कटवाये जाए| वह डिजिटल हो रहे  भारत और भारतीय बैंकिंग प्रणाली के उस  तकनीकी लूटमार से भी भयभीत  है जिसमें उसकी मेहनत की कमाई किसी और के खाते में केवल एक मोबाइल नंबर या आधार नंबर के हेर -फेर से चली जाती है....
 कुल मिलाकर बात यही है कि बैंक आज सरकार और पूंजीपतियों के निजी संस्था बन गए हैं, आम जनता से उनका कोई लेना देना नहीं है| इस जनतंत्र में जनता कल भी हाशिए पर थी और इस जनतान्त्रिक वित्तीय व्यवस्था में तो वह आज भी हाशिए पर है|

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